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    दिल्ली भाटी माइंस गाँव की एकजुटता: रिज मामले पर निर्णायक बैठक—गाँववासियों का संकल्प,

    सरांश: यह समाचार भाटी माइंस गाँव में रिज मुद्दे पर आयोजित बैठक पर केंद्रित है, जहां ग्रामीणों ने एकजुट होकर संकल्प लिया। पृष्ठभूमि: 2006 SC आदेश से रिज अतिक्रमण विवाद, 25,000+ निवासी प्रभावित। जनता की राय: एकता का जश्न, लेकिन बेदखली का डर। कुल: गाँव की ताकत एकजुटता में, लेकिन सरकारी चुनौतियां बरकरार।

    दिल्ली भाटी माइंस गाँव की एकजुटता: रिज मामले पर निर्णायक बैठक—गाँववासियों का संकल्प,

    📝We News 24 :डिजिटल डेस्क » प्रकाशित: 14 सितंबर 2025, 05:10 PM IST

    रिपोर्ट  दीपक कुमार, वरिष्ठ पत्रकार 


    नई दिल्ली :- दिल्ली के दक्षिणी छोर पर बसे भाटी माइंस गाँव में रिज के मुद्दे ने एक नई जंग छेड़ दी है। आज (15 सितंबर 2025) गाँव में आयोजित एक बड़ी और महत्वपूर्ण बैठक में हजारों ग्रामीणों ने एकजुट होकर आवाज बुलंद की। हर कोने से आए लोग—किसान, महिलाएं, युवा और बुजुर्ग—ने संकल्प लिया कि गाँव के अस्तित्व और अधिकारों की रक्षा के लिए कोई पीछे नहीं हटेगा। वरिष्ठ मार्गदर्शकों ने स्पष्ट कहा, “रिज का मुद्दा केवल ज़मीन का नहीं, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों और गाँव की पहचान का सवाल है।” बैठक के बाद नारे गूंजे: “अबकी बार, गाँव एकजुट—रिज की लड़ाई होगी पूरी सशक्त!” यह एकता साबित करती है कि भाटी माइंस के लोग जाग चुके हैं, और उनकी ताकत एकजुटता में छिपी है।



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    भाटी माइंस की पृष्ठभूमि: रिज पर अतिक्रमण का पुराना विवाद, गाँव की जंग

    भाटी माइंस, दक्षिण दिल्ली का एक ऐतिहासिक गाँव है, जो छत्तरपुर  रोड के अंतिम छोर पर स्थित है और हरियाणा की सीमा से सटा हुआ है। यह क्षेत्र अरावली पहाड़ियों के दक्षिणी रिज का हिस्सा है, जो 1996 से वन विभाग के अधीन है। गाँव में 25,000 से अधिक लोग रहते हैं, जिनमें भाटी कलां, भाटी खुर्द और संजय कॉलोनी जैसे हिस्से शामिल हैं। रिज मुद्दा दशकों पुराना है: 2006 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिल्ली सरकार ने गलत सबूत देकर भाटी माइंस को 'रिज पर अतिक्रमण' बताकर तोड़फोड़ का आदेश दिया। गाँव में स्कूल, आयुर्वेदिक अस्पताल, पशु चिकित्सालय, सामुदायिक हॉल और बस सेवा जैसी सुविधाएं हैं, लेकिन असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य (1991 में अधिसूचित) के कारण इसे 'अवैध' माना जा रहा है। 2014 में दक्षिण दिल्ली सांसद रमेश बिधुड़ी ने इसे 'मॉडल विलेज' बनाने की योजना की, लेकिन रिज विवाद बरकरार है। 2021 में 14 गाँवों (भाटी सहित) को आरक्षित वन घोषित करने की प्रक्रिया चल रही है, जो बेदखली का खतरा बढ़ा रही है। हाल ही में, 2022 में MCD ने भाटी माइंस को कचरा डंपिंग साइट बनाने की योजना बनाई, लेकिन वन्यजीव संस्थान ने इसका विरोध किया। यह बैठक गाँववासियों की लंबे समय से चली आ रही जंग का नया अध्याय है, जहां एकता से वे सुप्रीम कोर्ट और सरकार के फैसलों को चुनौती देना चाहते हैं।



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    भाटी माइंस की आम जनता की राय: एकजुटता का जश्न, लेकिन चिंता भी

    गाँववासियों की राय एकमत है—एकजुटता ही जीत की कुंजी है। बैठक में एक बुजुर्ग ने कहा, “हमारा गाँव रिज पर नहीं, बल्कि रिज हमारा गाँव है—हम पीछे नहीं हटेंगे।” युवाओं का उत्साह: “अबकी बार, गाँव एकजुट—हमारी आवाज दबाई नहीं जा सकती।” सोशल मीडिया पर समर्थन की बाढ़: “भाटी माइंस की एकता प्रेरणादायक—रिज बचाओ, गाँव बचाओ!” लेकिन कुछ लोग चिंता जता रहे हैं: “सरकार का रिज प्रोजेक्ट हमें बेघर कर देगा—क्या हमारी लड़ाई सफल होगी?” कुल मिलाकर, 80% राय सकारात्मक है, जहां एकता को ताकत माना जा रहा है, लेकिन बेदखली का डर बना हुआ है।


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     गाँव का दर्द, एकजुटता की रोशनी

     भाटी माइंस के एक  परिवार का दर्द—दशकों से रिज की गोद में बसे, लेकिन अब बुलडोजर का साया। बैठक में महिलाएं और बच्चे नारे लगाते हुए, बुजुर्ग आशीर्वाद देते हुए—यह एकता का भावुक दृश्य है। एक युवा ने कहा, “हमारी आने वाली पीढ़ी को गाँव की पहचान चाहिए, न कि बेघर होना।” यह संघर्ष सिर्फ ज़मीन का नहीं, बल्कि संस्कृति और जीविका का है। जब हर हाथ साथ उठता है, तो उम्मीद जगती है—भाटी माइंस की यह एकजुटता दिल्ली की राजनीति को चुनौती दे रही है।

    भाटी माइंस की यह लड़ाई दिल्ली के शहरीकरण vs ग्रामीण अधिकारों की जंग है। क्या एकजुटता जीत दिलाएगी? जनता की नजरें सरकार पर हैं!



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